कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज पारंपरिक चिकित्सा पद्धति होडोपैथी में
आदिवासी क्षेत्रों की अद्वितीय चिकित्सा पद्धति होडोपैथी मलेरिया व कालाजार समेत कई रोगों के इलाज के लिए झारखंड के जनजातीय समुदायों में खूब प्रचलित रही है। अब यह पारंपरिक चिकित्सा क्यों विलुप्त होती जा रही है
होडोपैथी विभिन्न जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उत्पादों का एक बहुत ही कीमती और विस्तृत ज्ञान का भंडार है, जो कैंसर से लेकर मधुमेह तक कई बड़ी बीमारियों को ठीक कर सकता है।
हालांकि, आधिकारिक तौर पर होडोपैथी को चिकित्सा विज्ञान में मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन अव्यवस्थित क्षेत्र की श्रेणी में यह चिकित्सा पद्धति सबसे अच्छी मानी गई है।
होडोपैथी किसी भी आयुर्वेदिक, यूनानी, सिद्ध या एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज में नहीं पढ़ाई जाती है। हालांकि ग्वालियर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एथनोमेडिसिन होडोपैथी में पीएचडी प्रदान करता है। यह संस्थान भारत सरकार से मान्यता प्राप्त है।
सदियों से इसे लिखित रूप में व्यवस्थित कर सहेजने का प्रयास किया गया है। वर्ष 1895 में अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन विलियम हर्षबर्गर ने एक लेख में लिखा था कि होडोपैथी जनजातीय जीवन से जुड़े एथनोबोटनी का ही रूप है।
एक अन्य चिकित्सक एसएफ हेम्ब्रम कहते हैं कि हम कैंसर, गठिया, लकवा, थायरॉयड, मधुमेह, हृदय और त्वचा रोग आदि सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज करते हैं। वह दावा करते हैं कि हमने कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज भी ढूंढ लिया है। उनका यह भी कहना है कि सभी क्षेत्रों के लोग उनके पास आते हैं, क्योंकि उनकी दवाएं सस्ती होती हैं और उनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है।
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